नई दिल्ली, 05 जून 2025: भारत भूमि पर प्रकृति के पांचों तत्वों को ईश्वरीय दर्जा प्राप्त है। इसी क्रम में, जल को वरुणदेव का स्वरूप माना गया है। भारत की सभी नदियां और जल के स्रोत वरुणदेव का ही अंश हैं, जिनमें गंगा नदी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। गंगा केवल देवलोक से अवतरित होने के कारण ही पवित्र नहीं कहलाईं, बल्कि उनके साथ ऋषियों-मुनियों के वरदान भी जुड़े हैं, जो मान्यतानुसार उनमें स्नान करने वाले लोगों को भी प्राप्त होते हैं।
गंगा के कई नाम और उनका महत्व
हिमालय की गोद से निकलकर उत्तर भारत के विशाल मैदानों को सींचती हुई, बंगाल की खाड़ी में समाहित होने तक, गंगा को लोक आस्था में कई नामों से पुकारा जाता है। ये नाम गंगाजल की पवित्रता को और बढ़ाते हैं।
- ब्रह्मकन्या: ब्रह्मा के कमंडल से उत्पन्न होने के कारण।
- विष्णुपदी: भगवान विष्णु के चरणों में निवास के कारण।
- हिमसुता: हिमालय की पुत्री होने के कारण।
- देवनदी: देवताओं के स्वर्ग में बहने के कारण।
- त्रिपथगा: तीनों लोकों में उनकी धाराओं के बहाव के कारण।
- जटाशंकरी: भगवान शिव द्वारा उन्हें अपनी जटा में स्थान देने के कारण।
- त्रिभुवन तारिणी, सुरसरिता, अमिसलिला, पुण्या जैसे कई अन्य नाम भी उनकी महिमा का बखान करते हैं।
पुराण कथाओं और लोककथाओं में गंगा की महिमा विभिन्न नामों से बताई गई है। प्रयागराज स्थित विशालाक्षी शक्तिपीठ के अध्यक्ष स्वामी अखंडानंद, बाबा तुलसी के रामचरित मानस का संदर्भ देते हुए कहते हैं: "धन्य देस सो जहं सुरसरी, धन्य नारि पतिव्रत अनुसरी.." अर्थात् वह देश धन्य है जहां देवनदी गंगा बहती हैं और जहां पतिव्रत का अनुसरण करने वाली स्त्रियां निवास करती हैं। उनका कहना है कि गंगा एक जीवंत देवी शक्ति, ममतामयी मां और परमार्थ के रूप में चारों ओर मौजूद हैं। भगवती गंगा हरिस्वरूपा, हरिभक्त और हरिभक्त प्रिया भी हैं।
'शब्द कल्पद्रुम' में 'गंगा' शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की गई है: 'गमयति प्रापयति ज्ञापयति वा भगवत्पदं या शक्ति: सा गंगा'। श्रीमद भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने स्वयं को गंगा नदी कहा है - 'स्त्रोत सामस्मि जान्हवी'। ऋग्वेद में भी गंगा का उल्लेख मिलता है - 'इमं मे गंगे यमुने सरस्वती शुतुद्रि'। बृहन्नारदीय पुराण के अनुसार, कलियुग में गंगाजी का विशेष महात्म्य है। गंगा को ब्रह्मा के कमंडल का जल, विष्णु का चरणोदक और शिव की जटाओं में स्थित पावन रसामृत माना गया है।
कैसे धरती पर आईं देवी गंगा?
गंगा का भारत भूमि पर अवतरण कोई सामान्य घटना नहीं थी, बल्कि इस अमृतसुधा को धरती पर लाने में कई महात्माओं के हजारों वर्षों की तपस्या का फल लगा है। पुराण कथाओं के अनुसार, राजा सगर के साठ हजार पुत्र, जो महर्षि कपिल के श्राप से भस्म हो गए थे, उनकी अकाल मृत्यु और मृत आत्माओं की शांति के लिए गंगा को धरती पर लाना आवश्यक हो गया था।
राजा सगर से शुरू होकर, उनके बाद राजा अंशुमान ने 32,000 वर्षों तक, फिर राजा दिलीप ने 30,000 वर्षों तक, और अंत में राजा भगीरथ ने 1,000 वर्षों तक कठोर साधना की। उनके तप के फलस्वरूप ही गंगा को धरती पर लाया जा सका। राजा भगीरथ ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए 1 वर्ष तक दाहिने पैर के अंगूठे पर खड़े होकर तपस्या की थी, जिसके परिणामस्वरूप भगवान शिव गंगा को अपने मस्तक पर धारण करने हेतु तैयार हो गए थे। श्रीवाल्मीकि रामायण में राजा भगीरथ को 'नरश्रेष्ठ' शब्द से संबोधित किया गया है।
गंगा अवतरण की तिथि: गंगा दशहरा
गंगा के पृथ्वी पर अवतरण की तिथि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की हस्त नक्षत्र युक्त दशमी मानी गई है। इस तिथि पर गंगा जी में स्नान, दान और संकल्प करने से 'दसविध' पापों का नाश होता है। इसी कारण इस पावन पर्व को 'गंगा दशहरा' के रूप में प्रसिद्धि मिली है, जो दस प्रकार के पापों का हरण करने वाली है।
ब्रह्मपुराण में दर्ज है:
ज्येष्ठ मासि सिते पक्षे, दशमी हस्त संयुता. हरते दश पापानि, तस्मादं दशहरा स्मृता..
दस पाप ये बताए गए हैं:
पहला- कायिक (शारीरिक)
- बिना दी हुई वस्तु को हड़प लेना।
- अविहित हिंसा करना।
- पर स्त्रियों से अवैध संबंध रखना।
दूसरा- वाचिक (वाणी) 4. कठोर वाणी बोलना। 5. असत्य भाषण करना। 6. चुगलखोरी करना। 7. अनर्गल वार्तालाप करना।
तीसरा- मानसिक (मन) 8. पराए धन का लालच आना। 9. मन ही मन किसी के विरुद्ध अनिष्ट चिंतन। 10. नास्तिक बुद्धि रखना।
दस तरह के पाप हर लेती हैं देवी गंगा
ज्येष्ठ शुक्ल हस्त युक्त गंगा दशहरा पर्व पर गुड़ और सत्तू के दस पिंड, ‘ॐ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै स्वाहा’ मंत्र से दान करने से, और दस-दस फल, पुष्प, नैवेद्य दीप, दशांश, धूप, दस ब्राह्मण को दस सेर तिल दान करने से मनुष्य दस जन्म के दस प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है।
संतों का मत है कि गंगा स्नान करने वाला त्रिदेव रूप हो जाता है। गंगा स्नान करने वाला गंगाजल में पैर रखते ही चरणों से गंगाजल का स्पर्श होने के कारण विष्णु रूप, गंगा में डुबकी लगाते ही सिर पर गंगा धारण करने से शिव रूप, तथा गंगा स्नान करके घर लौटते समय कमंडल में गंगाजल धारण करने से ब्रह्म रूप हो जाता है।
गंगा हमारे देश की पहचान है, हमारी अस्मिता है, हमारी धरोहर है और हमारी संस्कृति की पहचान है। गंगा दशहरा और पर्यावरण दिवस का संयोग भी एक ही दिन होना, भारत के पर्यावरण के प्रति उसकी प्राचीन मनीषा की जागरूकता को ही रेखांकित करता है। आवश्यकता है कि हम अपनी संस्कृति को उसके सही स्वरूप में और सही समझ के साथ अपनाएं।